शनिवार, नवंबर 26, 2011

आतंकवादी हमलों का कारण भारत सरकार का रवैया

      आज मुंबई हमले की त्रासदी हुए तीन वर्ष हो गए हैं, इस हमले में मारे गए व्यक्तियों  को अश्रुपूर्ण श्रद्धांजलि एवं इस हमले में घायल एवं प्रभावित हुए लोगों को सहानुभूति |
        जिस वक्त हमला हुआ था उस समय मैं नागपुर में एक होटल के कमरे में यात्रा की थकान उतार रहा था कि तभी टेलीविजन से  हमले की खबर मिली |  चूँकि उस दिन पहली बार मैंने महाराष्ट्र में प्रवेश किया था इसलिए नागपुर और मुंबई के बीच लम्बी  दूरी होने के बावजूद ऐसा लग रहा था जैसे कि मैं घटना स्थल में ही मौजूद हूँ | मेरे लिए तो महाराष्ट्र में ठहराव सामान्य ही रहा पर बहुत से देशी एवं विदेशी लोगों के लिए वह ठहराव जिंदगी का ठहराव साबित हो गया | 
       पर हमले के तीन साल बीत जाने पर हमें इस दौरान हुए घटनाक्रमों के आधार पर यह सोचने कि आवश्यकता है कि इन हमलों का जिम्मेदार कौन है, आम भारतीय तथा सरकार मानती है कि इन हमलों का जिम्मेदार पाकिस्तान है जो कि अपनी भूमि पर आतंकवादियों को संरक्षण दे रहा है तथा आर्थिक एवं अन्य प्रकार की सहायता के द्वारा भारत पर आतंकवादी हमले करने के लिए प्रोत्साहित कर रहा है | अभी तक मेरा मानना भी यही था लेकिन वास्तविकता यह है कि इन हमलों के लिए जिम्मेदार भारत सरकार है क्योकि जब एक आतंकवादी समूह हमारी विधायिका जहाँ पर सिद्धांततः देश के नफे नुकसान से सम्बंधित बातों पर विचार करके देश के हित के लिए कानून बनाये जाते हैं अर्थात संसद पर हमला करता है और हमारे बहादुर  सुरक्षाकर्मी इस हमले को नाकाम करते हैं, हमारी जांच एजेंसियां मुख्य अपराधी को पकड़ कर अदालत में पेश करती है, हमारे न्यायालय एक नहीं बल्कि कई बार अपराधी को मृत्युदंड सुनाते हैं, परन्तु हमारी सरकार अपराधी द्वारा राष्ट्रपति को दी गयी दया याचिका को सालों तक लटकाकर मुख्य अपराधी को जेल में आराम से जीवन यापन करने कि सहूलियत प्रदान करती हैं |
      इसी प्रकार देश की आर्थिक राजधानी में आतंकवादी हमला होता है, सैकड़ों लोग मारे जाते हैं, इस आतंकी वारदात को अंजाम देने वाले नौ आतंकी भी मारे जाते है लेकिन एक बहुत ही सौभाग्यशाली आतंकवादी सुरक्षा एजेंसियों द्वारा जिन्दा ही पकड़ लिया जाता है, उस आतंकवादी को मीडिया के कैमरों द्वारा पूरा भारत ही नहीं पूरा विश्व आतंकी वारदात करते हुए देखता है परन्तु हमारे यहाँ न्यायालयी व्यवस्था का पूरा सम्मान किया जाता है इसीलिए हमारी सरकार अपराधी को देश के खर्चे से वकील करने कि सुविधा देती है और अब जबकि  विशेष न्यायालय और फिर उच्च न्यायालय ने चीख - चीख कर कह दिया है कि कसाब को मृत्युदंड दिया जाता है तब तक में सरकार ने अरबों रुपये कसाब की सुरक्षा और अन्य मदों में खर्च कर दिए हैं, और अब कसाब की याचिका सर्वोच्च न्यायालय में लंबित है | और लम्बे समय तक सुनवाई करने के बाद सर्वोच्च न्यायालय भी कसाब की फांसी की सजा बरकरार रखेगा और फिर कसाब की दया याचिका ठुमकते - ठुमकते राष्ट्रपति के पास पहुँच जाएगी और उसके बाद कसाब भी अफजल गुरु की तरह आराम से जेल में जिंदगी गुजारेगा |  
        भारत सालों से रोना रो रहा है कि पाकिस्तान आतंकवादियों को संरक्षण दे रहा है, मुंबई हमलों के मुख्य आरोपियों पर कार्यवाही नहीं कर रहा है, लेकिन जब हम  स्वयं आतंकियों को पकड़ने के बाद उनको सजा नहीं दे सकते तो हम किसी दूसरे देश वो भी पाकिस्तान से ऐसी उम्मीद कैसे कर सकते हैं कि वो आतंकवादियों को पकड़ेगा, और मैं तो चाहता हूँ की पाकिस्तान किसी आतंकवादी को पकडे तो बहुत अच्छी बात है परन्तु वह किसी भी आतंकवादी को भारत को प्रत्यर्पित न करे अन्यथा अफजल और कसाब जैसे और भी आतंकी जनता के धन से जेल में खूब मजे लूटेंगे | 
       इस स्थिति में मैं भारत में आतंकवाद के मुद्दे पर पाकिस्तान, आतंकवादी संगठनों एवं उनके समर्थकों के स्थान पर स्वयं भारत को जिम्मेदार मानता हूँ, चूँकि हम लोकतांत्रिक देश के निवासी है और अप्रत्यक्ष रूप से देश की जनता ही अपने प्रतिनिधियों के माध्यम से देश को चलाती है इसलिए इन हमलों के जिम्मेदार हम भारतवासी ही है यदि हम अर्थात पूरे देश की जनता आतंकियों के खिलाफ कड़ी से कड़ी कार्यवाही करने की ठान लें तो कोई भी राजनीतिक दल हमारी राय के खिलाफ नहीं जा सकता | हम विकासशील  देश होने के कारण ज्यादातर मामलों में अमेरिका एवं अन्य विकसित देशों की नीतियों को बिना कुछ सोचे समझे अपने देश में लागू करते हैं काश कि हम आतंकवाद के मामले में भी अमेरिकी नीति से कुछ सबक सीखते | जब तक हम आतंकियों के खिलाफ कड़ा रूख अख्तियार नहीं करेंगे तब तक हम आतंकी संगठनों को आतंकी वारदात करने के लिए प्रेरणास्रोत ही बने रहेंगे |

शुक्रवार, जून 10, 2011

चर्बीयुक्त कारतूस और बाबा की गोपनीय चिट्ठी



     इस सदी का दूसरा दशक अपने साथ विभिन्न देशों में लम्बे समय से अपरिवर्तित सत्ता को बदलने तथा भ्रष्टाचार एवं अन्य सामाजिक बुराइयों को दूर करने की इच्छा शक्ति लेकर आया है | ट्यूनीशिया से शुरू हुई क्रांति की आग ने मिस्र, यमन, लीबिया आदि देशों में जनसामान्य की सत्ता परिवर्तन की चाह को साहस द्वारा पूरा करने की प्रेरणा दी | इनमें से कुछ देशों में ये क्रांतियाँ स्थानीय एवं अंतर्राष्ट्रीय प्रयासों से सफल हुई वहीँ कुछ राष्ट्रप्रमुखों ने दमन की नीति चलते हुए अभी तक सत्ता नहीं छोड़ी है |
          अपने भारत देश में भी वर्तमान समय की सर्वप्रमुख समस्या भ्रष्टाचार जोकि हमारे  देश को टेबल के नीचे से एवं लिफाफों के के अन्दर से महात्मा गाँधी के मुस्कुराते हुए चहरे के साथ खोखला कर रही है, के खिलाफ अप्रैल माह में अन्ना हजारे जी के नेतृत्व में सरकार के समक्ष लोकपाल विधेयक के प्रस्ताव के  लिए आन्दोलन किया गया|  सरकार द्वारा अन्ना की सभी प्रमुख मांगे मान लिए जाने के बाद यह अनुभव हो रहा था की  इस बीमारी का प्राथमिक इलाज सही हो रहा है | परन्तु अब तो अन्ना ही यह कहने लगे हैं के सरकार ने हमारे साथ धोखा किया  है | 
           अब इसके बाद जून में बाबा रामदेव अनशन पर बैठते हैं | वह व्यक्ति जिसने कई सालों से योग तथा प्राचीन भारतीय चिकित्सा प्रणाली आयुर्वेद  के प्रचार - प्रसार के  द्वारा लाखों लोगों को स्वास्थ्य लाभ कराया है वह अब विदेशों से काले धन को देश में लाकर उसे राष्ट्रीय सम्पत्ति घोषित करने सहित अन्य कई राष्ट्रहित की मांगों को मनवाने के लिए रामलीला मैदान में अपने समर्थकों समेत अनशन पर बैठता है |
          केंद्र सरकार बाबा रामदेव  के प्रभाव और उनके समर्थकों की बड़ी संख्या को देखते हुए और अन्ना हजारे के अनशन के प्रभाव से सीख लेते हुए अनशन शुरू होने के एक दिन पहले बाबा रामदेव को मनाने के लिए अपने चतुर एवं कुटिल  मंत्रियों को उनके पास भेजती है, बैठक के बाद यह बात सामने आती है की अधिकतर  मुद्दों पर सहमति बन गयी है परन्तु सभी बातों को न माने जाने के कारण बाबा रामदेव अनशन करेंगे | अगले दिन पुनः बाबा और केन्द्रीय मंत्रियों में बातचीत होती है और शाम तक बाबा की सभी बातें मांग लिए जाने की सूचना प्राप्त होती है लेकिन साथ ही साथ बड़े ही नाटकीय रूप से एक चिट्ठी प्रकट होती है  जिसमें बाबा रामदेव द्वारा अनशन शुरू करने के  एक दिन पहले ही 2-3 दिन के के अन्दर ही आन्दोलन ख़त्म करने की घोषणा सरकार के समक्ष की जाती है |
      पिछले एक हफ्ते से चल रहे सभी नाटकीय एवं नकारात्मक घटनाक्रम का मूल यह चिट्ठी ही है | हांलाकि यह बात तो निश्चित है बाबा रामदेव अपनी बाहरी वाणी के द्वारा जितने ईमानदार, एवं आदर्श व्यक्तित्व होने की बात करते हैं अपनी मन की वाणी में वे वैसे नहीं है तभी तो उनके खिलाफ बहुत सी बातें उठती है परंतु फिर भी उन्होनें एक अच्छे कार्य के लिए अपने कदम आगे बढ़ाए हैं | ऐसे में बाबा के साथ केंद्र सरकार का ऐसा बर्ताव निःसन्देह अंग्रेज़ जमाने की याद दिलाता है | जहां सिब्बल जैसे अनुभवी एवं  कुटिल मंत्रियों का समूह हो वहाँ बाबा का उनके बहकावे में आकर चिट्ठी दे देना कोई आश्चर्यजनक घटना नहीं है | लेकिन इस चिट्ठी की घटना ने इस संगठित आन्दोलन को पूरी तरह से बिखेर दिया है, इतिहास में ऐसी अनेक संस्मरण हैं जब किसी एक घटना ने पूरे  आन्दोलन को नाकाम कर दिया हो | भारतीय इतिहास में 1857 की क्रांति को प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के नाम से जाना जाता है, इस क्रांति का तत्कालीन कारण चर्बीयुक्त कारतूस थे जिसके कारण सैनिकों में असंतोष हो जाने के कारण क्रांति नियत समय के पहले ही शुरू हो गयी | क्रांति का नियत समय से पहले शुरू होना भी क्रांति के असफल होने के प्रमुख कारणों में से एक था | इसी प्रकार भ्रष्टाचार के खिलाफ शुरू हुई लड़ाई भी चिट्ठी प्रकरण के बाद से दिशाहीन हो गयी है |
         बाबा रामदेव एवं सरकार की मंशा क्या है और कौन कितना दोषी है, इन विचारों को छोड़ते हुए हमें ये सोचना चाहिए 4-5 तारीख की दरम्यानी रात को जो भी हुआ वह कितना सही था | यदि बाबा ने सरकार के साथ धोखा किया था तो सरकार को तार्किक बिन्दुओं को आधार बना कर बाबा पर कार्यवाही करनी चाहिए थी | परन्तु सरकार ने बाबा का समर्थन करने वाले हजारों लोगों को बेरहमी के साथ रामलीला मैदान के पंडाल  से बाहर करवा दिया | वे न तो सरकार की चालाकी समझते थे और न ही बाबा रामदेव की चालाकी को, वे तो मात्र इस आशा में अनशन में बैठे थे की इन मांगों को मान लिए जाने उनका जीवन बेहतर होगा और हम नई पीढ़ी को एक अच्छा भविष्य देकर जायेंगे | बाबा रामदेव के समर्थक देश के अलग - अलग भागों से आये थे इसलिए ऐसे बहुत कम खुशनसीब लोग ही रहे होंगे जिनका घनिष्ठ परिचित  दिल्ली में रहा हो और वे वहां आसरा पा सके हों |ऐसे में आंसू गोले और डंडों की मार झेलने के बाद निश्चित ही वह रात उनके लिए बहुत ही भयावह  रही होगी | 
       सरकार और दिल्ली पुलिस इस मामले में बहुत ही बचकाने से तर्क दे रही है | इस घटना के बाद सरकार के सभी मंत्री रामदेव बाबा को गलत साबित करने में जुट गए हैं | लेकिन सर्वाधिक चिंतनीय बात तो यह है की सात दिनों से अनशन पर बैठे बाबा के गिरते स्वास्थ्य के बावजूद सरकार आँख मूंदे बैठी है | 

रविवार, फ़रवरी 27, 2011

भारतीय न्याय तंत्र में अफजल और कसाब

दो दिन पहले के अखबार में एक खबर ने मेरा ध्यान खींचा वह खबर थी-  ''राष्ट्रपति को नहीं भेजी अफजल की दया याचिका'' | इस खबर के अनुसार केन्द्रीय गृह मंत्री ने राज्यसभा में एक प्रश्न के उत्तर में यह बताया है कि अफजल गुरु की दया याचिका अभी तक राष्ट्रपति भवन तक नहीं पहुंचाई गयी है| पूरी खबर पढ़ने के बाद इस बात का भी ज्ञान हुआ यदि सरकार आरोपी की दया याचिका पर अनिश्चितकाल तक कोई निर्णय न ले तो आरोपी को अपने मामले को उच्चतम न्यायालय में ले जाने का विकल्प प्राप्त हो जाता है, अब यहाँ पर 'अनिश्चितकालीन' समय से किस समय अवधि का बोध होता है यह तो मुझे समझ में नहीं आ रहा लेकिन वर्तमान हालातों को देखकर यह अवश्य ही समझ में आ रहा है,कि भारत की सर्वोच्च संवैधानिक संस्था 'भारतीय संसद'  में हमला कर भारत की अस्मिता पर चोट पहुँचाने वाला हमले का मास्टर माइंड अफजल गुरु स्वाभाविक मृत्यु से ही मारा जायेगा क्योंकि निचली अदालत द्वारा अफजल को फांसी की सजा दिए जाने और उच्च न्यायलय एवं उच्चतम न्यायलय द्वारा फांसी की सजा के निर्णय को बरक़रार रखे जाने के साढ़े चार वर्ष बाद भी अफजल जेल में भारतीय जमीं का अन्न डकार रहा है | और उसकी पत्नी द्वारा राष्ट्रपति को भेजी गयी दया याचिका देश में संचार क्रांति के आ जाने के बावजूद अभी तक अपने गंतव्य अर्थात राष्ट्रपति भवन तक नहीं पहुँच पाई है |
        जहाँ एक और अफजल गुरु की दया याचिका केन्द्रीय गृह मंत्रालय के कार्यालय में आराम फरमा रही है वहीँ भारत की आर्थिक राजधानी मुंबई पर आतंकवादी हमला कर सैकड़ों लोगों की जान लेने वाले दस आतंकवादियों में से जिन्दा बचे  एकमात्र आतंकी अजमल कसाब को निचली अदालत द्वारा दिए गए मृत्युदंड को मुंबई उच्च न्यायलय ने बरकरार रखा है, और अब कसाब के वकील ने उच्चतम न्यायलय में अपील करने के विकल्प के खुला होने की बात की है यदि यह मामला उच्चतम न्यायलय में गया  तो भी निर्णय मृत्युदंड का ही रहेगा इसके बाद कसाब अपने आखिरी अधिकार का भी प्रयोग करेगा और वह भी राष्ट्रपति के पास दया याचिका भेजेगा और अन्त्वोगत्वा वह भी अफजल गुरु की तरह ही सरकारी आवास अर्थात जेल में अपनी जिंदगी गुजार देगा और भारत सरकार देश के ईमानदार एवं मेहनतकश लोगों द्वारा दिए गए कर के करोड़ों रुपयों का उपयोग इन आतंकियों की सुरक्षा के नाम पर खर्च कर देगी | 
      अब तो दया याचिका का प्रयोग बड़े गुनाहगारों को बचने के लिए किया जाने लगा है और इस मामले में तो उच्चतम न्यायालय भी कुछ नहीं कर सकती |
      कसाब मामले में यह बात अक्सर कही गयी है कि कसाब को अपना बचाव करने और अपनी बात कहने का पूरा मौका दिया गया है ताकि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत की छवि एक ऐसे राष्ट्र के रूप में बन जाये जहाँ पर एक आतंकवादी के लिए भी कानून एवं न्यायालय पूरी निष्पक्षता के साथ कार्य करता  है | परन्तु यहाँ पर मेरा प्रश्न यह है कि मानाकि इस मामले से तो देश की छवि अच्छी होगी, परन्तु क्या विश्व की भीषणतम रासायनिक दुर्घटना भोपाल गैस त्रासदी में साढ़े पच्चीस वर्ष बाद आये अन्यायपूर्ण निर्णय से देश की छवि को बहुत लाभ हुआ है, अनेक मामलों में अपराधी करार दिए जाने वाले राजनेता और प्रभावशाली व्यक्ति जब अल्प समय में जेल से छूट कर आजाद घूमते हैं क्या तब भारत की छवि बहुत अच्छी हो जाती है, जब किसी मामले पर न्यायालय का फैसला तीस-चालीस वर्षों बाद आता है तो क्या भारत की छवि में निखार आ जाता है |
     भोपाल गैस त्रासदी पर न्यायालय का  निर्णय, अफजल गुरु का अभी तक जिन्दा रहना आदि ऐसे कई मामलों के कारण अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत की छवि एक ऐसे राष्ट्र के रूप में बन रही है जहाँ  देश पर हमला और देश का अहित करने वाले आरोपी विदेशी नागरिकों की सुरक्षा का पूरा ध्यान दिया जाता है जबकि देश की आम जनता  न्यायालय में न्याय मांगते हुए ही बूढी हो जाती है |
    जब पूरे भारत ने मीडिया के माध्यम से कसाब को आतंक फैलाते हुए देखा है तो क्यों न्याय की निष्पक्षता के नाम पर उसको जेल में जिन्दा रखकर उसकी सुरक्षा के नाम पर करोड़ों रुपये फूंके जा रहे हैं|  पुराने समय में अपराधी को शहर की जनता के सामने छोड़ दिया जाता था और जनता द्वारा अपराधी को पत्थरों से मारा जाता था और अंततः अपराधी की मृत्यु हो जाती थी | कसाब और अफजल जैसे आतंकियों के साथ भी ऐसा ही होना चाहिए ताकि कोई भी हमारे देश की ओर आँख उठाने की हिम्मत ही न कर सके | 
   
    

गुरुवार, जनवरी 06, 2011

बीते वर्ष की दो बेहद दुर्भाग्यपूर्ण घटनाएं

    2010 बीत गया है और एक नया वर्ष 2011 हमारे सामने है, प्रत्येक वर्ष जब साल की शुरुआत होती है तो हम सभी एक दूसरे को इस उम्मीद के साथ शुभकामनाएं देते हैं कि नया वर्ष हमारे लिए खुशियों से भरा होगा | इसी आशा से मैं सभी को नव वर्ष की शुभकामनाएं देता हूँ |

       प्रत्येक वर्ष की तरह बीता वर्ष भी अनेक अच्छी एवं बुरी घटनाओं का साक्षी रहा है | लेकिन निश्चित ही यह वर्ष अनेक घोटालों के खुलासों के लिए याद किया जायेगा | सर्वप्रथम राष्ट्रमंडल खेल घोटाला फिर आदर्श हाऊसिंग घोटाला उसके बाद सभी घोटालों का बाप 2जी स्पेक्ट्रम घोटाला उसके बाद तो घोटालों के खुलासों की ऐसी लाइन लगी की किसी आम आदमी के लिए उन सभी घोटालों  का नाम याद रख पाना भी मुश्किल हो गया अब तो वह समय आ गया है की 'घोटाला समाचार' नाम से एक दैनिक समाचार पत्र का प्रकाशन भी किया जा सकता है| लेकिन इतना निश्चित है की इन सभी घोटालों की जांच में वर्तमान भारतीय रीति का पूरी तरह से पालन किया गया है और देश के साथ इतनी बड़ी गद्दारी करने के लिए मंत्रियों एवं सत्ता से जुड़े व्यक्तियों को सिर्फ अपने पद का त्याग करना पड़ा है जोकि मामला शांत होने पर उन्हें वापस भी मिल जायेगा | जांच में हो रही लेट -लतीफी और मंद गति को देख कर तो ऐसा लग रहा है कि सभी घोटालेबाजों को समय दे दिया गया था की इस दिनांक तक  आप अपना पूरा अवैध धन स्विस बैंकों में जमा करा दीजिये क्योंकि उस दिनांक के बाद आपके यहाँ सी.बी.आई. का छापा पड़ेगा |
   हमारे माननीय प्रधानमंत्री जी तो आई.एस.ओ. द्वारा ईमानदारी का प्रमाणपत्र प्राप्त कर चुके हैं, अब उनको इस बात से क्या  फर्क पड़ता है की उनके मंत्रिमंडल में कितने बेईमान बैठे हैं| वे बिचारे कर ही क्या सकते हैं, अगर सोनिया मैडम नाराज हो जाएँगी, तो वो तो मनमोहन जी को हटाकर राहुल जी को मंत्रिमंडल का मानीटर बना देंगी इसी लिए मनमोहन जी बीच - बीच में सोनिया मैडम की खुशामद कर देते हैं |

     अमेरिका में 09/11 के हमले के दो महीने बाद हमारे देश की सर्वोच्च संवैधानिक संस्था संसद में 13 दिसंबर 2001 को आतंकवादियों ने हमला कर दिया था जिसे  हमारे सुरक्षाकर्मियों ने साहस का श्रेष्ठतम प्रदर्शन करते हुए नाकाम कर दिया था, तथा कुछ सुरक्षाकर्मियों ने अपने प्राणों का उत्सर्ग करके हमारे देश की अस्मिता को बचाया था,लेकिन जहाँ एक ओर अमेरिका ने न्यूयार्क और पेंटागन में हमला करने वालों को कुछ ही समय में नेस्तनाबूद कर दिया वहीँ भारत में संसद में हमले का मुख्य आरोपी अफजल गुरु सालों पहले मृत्युदंड पाए जाने के बावजूद अभी तक जिन्दा है, यदि इस हमले में एक भी सांसद की मौत होती तो निश्चित ही हमले के मास्टरमाइंड को तुरंत सजा दे दी जाती लेकिन चूँकि मौत सुरक्षा कर्मियों की हुई है, इसलिए इस मुद्दे में अभी भी सिर्फ राजनीति की जा रही है | क्या भ्रष्टाचार और आरोप -प्रत्यारोप का खेल खेलने वाले राजनेताओं के सामने देश के लिए अपने प्राणों का उत्सर्ग करने वाले सुरक्षाकर्मियों की जिंदगी का कोई मूल्य नहीं है|


   गुजरे वर्ष में बहुत सी ऐसी घटनाएं हुई जोकि किसी भी सभ्य देश के लिए अत्यंत शर्मनाक एवं दुखदायी मानी जाएँगी | इनमें बहुत सी घटनाओं का जिक्र अनेकों बार किया जा चुका है इसलिए मैं दो ही दुर्घटनाओं की चर्चा करूँगा |
  प्रथम घटना --  07 जून 2010 को भोपाल गैस त्रासदी के साढ़े पच्चीस वर्ष बाद भोपाल की अदालत ने फैसला सुनाया जिसमें लाखों लोगों के जीवन को बुरी तरह दे प्रभावित करने तथा हजारों लोगों की जान लेने वाली इस भीषणतम दुर्घटना के 8 दोषियों को मात्र दो वर्ष के कारावास की सजा सुनाई गयी जबकि इस दुर्घटना का मुख्य आरोपी यूनियन कार्बाइड कार्पोरेशन लिमिटेड के तत्कालीन सी.ई.ओ. वारेन एंडरसन को मध्य प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह ने दुर्घटना के चंद घंटों बाद ही पूरे राजकीय सम्मान के साथ उसके देश अमेरिका में भिजवा दिया था और आज वह अमेरिका में आनंद का जीवन व्यतीत कर रहा है| इस मामले में राजनीतिज्ञों , प्रशासनिक अधिकारियों, न्यायाधीशों सभी की भूमिका नकारात्मक रही | 13 अप्रैल 1919 को अंग्रेजी शासन की बर्बरता का सबूत मिला था जब अंग्रेज अधिकारी जनरल डायर ने जलियावाला बाग़ में शांतिपूर्ण सभा कर रहे लोगों को बिना चेतावनी दिए अंधाधुंध फायरिंग कर दी थी जिसमें दो हजार से अधिक लोगों की मृत्यु हो गयी थी लेकिन तब तो एक विदेशी सरकार हम पर शासन कर रही थी जबकि 1984 में तो हमारी खुद की सरकार थी पर हजारों हत्याओं के मुख्य दोषी को तो हमारे नेताओं ने सुरक्षित उसके देश पहुंचा दिया जबकि हमारी न्यायपालिका ने अन्य दोषियों को 26 साल बाद मात्र दो साल की कैद सुनाई, बची खुची क़सर भ्रष्ट नेताओं एवं अधिकारियों ने प्रभावितों को उचित मुआवजा तथा सुविधाएं न देकर पूरी कर दीं |  निश्चित ही यह दुर्घटना तथा उस पर ऐसा अन्यायपूर्ण  न्याय हमारे देश के लिए एक कलंक है |

   द्वितीय घटना --  इसी प्रकार एक अन्य दुर्घटना 30 नवंबर 2010 को घटी, यह दुर्घटना बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण थी, जब भारत में स्वदेशी आन्दोलन के उत्प्रेरक, आजादी बचाओ आन्दोलन के प्रणेता एवं भारत स्वाभिमान संगठन के तात्कालीन सचिव राजीव दीक्षित जी की मृत्यु हो गयी | यह देश के लिए ऐसी हानि है, जिसकी पूर्ति वास्तव में संभव नहीं है, एक वैज्ञानिक होने के बावजूद उन्हें भारत के अतीत एवं वर्तमान के प्रत्येक पहलू की पूरी जानकारी थी, कोई भी व्यक्ति यदि उसमें जरा भी देश प्रेम की भावना है राजीव जी के विद्वतापूर्ण एवं चमत्कारिक भाषण को एक बार सुनकर उनसे प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकता था| चार -पांच माह पहले मुझको राजीव जी के भाषण को सुनने का सुअवसर मिला था जब वे मैहर आये थे | जब भी किसी समाज अथवा देश में बुराइयाँ बढ़ती हैं तो वहां पर एक महापुरुष का आगमन होता है जोकि उस समाज को सही दिशा देता है लेकिन लगता है की भारतमाता को यह मंज़ूर नहीं था इसीलिए उन्होंने हम सब के बीच से भारत के इस महान  सपूत को इतनी जल्दी वापस बुला लिया |
     पत्रकारिता को लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ माना जाता है, मीडिया किसी भी देश के लोगों की आवाज होती है जोकि उस आवाज़ को संविधान के दूसरे स्तंभों तक पहुंचाती है लेकिन यदि यही मीडिया किसी मुद्दे पर चुप्पी साध ले तब तो आम जन असहाय हो जायेगा | इस दुर्घटना में मीडिया का कुछ ऐसा ही रवैया रहा है | राजीव जी की मृत्यु की खबर मुझ तक 05 दिनों बाद पहुंची थी वह भी किसी व्यक्ति के द्वारा | वर्तमान में भारत के सबसे विद्वान राष्ट्रभक्त की मृत्यु की खबर किसी भी समाचार चैनल तथा किसी भी समाचार पत्र में प्रकाशित नहीं हुई | यह बात कैसे संभव है कि बहुत सारे घोटालों का खुलासा करने वाली मीडिया को इस दुर्घटना की खबर नहीं लगी, क्या राजीव जी पत्रकारिता की परिधि के बाहर थे, क्या वे राष्ट्र प्रेम की उस सीमा को भी पार कर चुके थे जिस सीमा के आगे पत्रकारिता का स्वरूप बौना हो जाता है, मेरा मानना है की इस अर्थ प्रदान युग में बहुत से धन लोलुप एवं विदेश प्रेमियों का राजीव जी के स्वदेशी आन्दोलन से नुकसान हुआ होगा इसलिए यदि किसी एक समाचार पत्र या चैनल अथवा कोई एक मीडिया समूह अथवा मीडिया का एक विशेष वर्ग यदि इस खबर की अनदेखी करे तो बात समझ में आती है लेकिन यदि पूरा मीडिया ही इस खबर की अनदेखी कर रहा है तो उसका अर्थ यही है की कोई एक ऐसा तत्त्व है जोकि मीडिया द्वारा दी जा रही खबरों पर नियंत्रण रखता है, तथा अपने लिए हानिप्रद खबरों को आम जन तक पहुँचने से रोकता है | 
      राजीव जी की मृत्यु की खबर तुरंत किसी को नहीं लगने दी गयी तथा उनकी लाश का पोस्टमार्टम भी नहीं कराया गया तथा उसके बाद मीडिया की गहरी चुप्पी यह इशारा कर रही है की एक महीने पहले देश में एक बहुत बड़ी तथा सोची समझी साजिश रची गयी थी |
      जिस प्रकार से वीर विनायक दामोदर सावरकर ने काला पानी की 10 सालों की अति कष्टदायक सजा भारत की आजादी के स्वर्णिम सपने को देखते हुए भोग ली लेकिन भारत की आजादी के बाद महात्मा गाँधी की हत्या की साजिश रचने के आरोप में उन्हीं को कटघरे में लाकर खड़ा कर दिया गया था, उसी प्रकार भारत के स्वर्णिम अतीत को वापस लाने तथा भारत के सभी लोगों को खुशहाल बनाने की चाह रखने वाले राजीव जी ने अपने पूरा जीवन देश सेवा में लगा दिया लेकिन उनको भी ऐसी रहस्यमयी मौत लील ले गयी और हमारे मीडिया ने मुहँ बंद कर लिया |