बुधवार, दिसंबर 03, 2014

भोपाल गैस त्रासदी

 
 दर्द नहीं कम होगा
 एक पक्षीय सिद्धांत आदर्शों से, 
 पिस रही है मानवता 
 आशंका के चक्रव्यूह में 
 न जाने कितने बरसों से। 

 सुविधा मानव की प्रवृत्ति
 मानव प्रकृति के बीच भित्ति,
 बुद्धि ह्रदय का अंतराल 
 असमन्यवता की मिसाल 
 पूंजी का ऐश्वर्य जाल,
 चरमोत्कर्ष ला दिया तुमने 
 सुविधा को दुविधा में डाल,
 नागासाकी हिरोशिमा 
 अब रच डाला है भोपाल, 
 अंधी दौड़ का परिणाम 
 भोपाल काल, भोपाल काल। 

 गम और आंसुओं के सैलाब में
 डूब गया भोपाल ताल, 
 मृत्यु सहम कर थरथरा गई 
 देख नर पिशाचों का हाल, 
 अभी - अभी सो रहा था जो
 एक नगर खुशहाल, 
 मानव के खूनी हाथों ने 
 लिख दी उसकी कथा - कराल। 

 श्वांस ने लिया श्वांस अनगिनत 
 न जाने तड़पे कितने,
 घुट - घुट कर मरे वहीँ 
 जितने थे उतने के उतने, 
 कीट नाशक ने कैसे जिन्दा दफनाया 
 मानव को कीटों जैसा, 
 पूंजीवाद ने डसा 
 अमरीका के वीटो जैसा, 
 वोट बैंकरों ने डसा अपनी वोटों को, 
 दलालों ने भरा अपनी कोटों को,
 लेकिन, 
 उन बेचारों का क्या दोष 
 जिन्होंने भोगा इसको, 
 यह कोई प्राकृतिक प्रकोप नहीं, 
 मानव सी आकृतियों नें 
 भेजा था परलोक उनको।   

 संसार की अनुपम कृति को 
 क्या भष्मासुर बनना है, 
 अपने ही उपकरणों से 
 क्या भस्म धरा को करना है।     


                                 - देवेन्द्र कुमार द्विवेदी

                                   ( पिताजी द्वारा तीस वर्ष पूर्व लिखित )

  इस भीषण दुर्घटना में मारे गए लोगों को श्रद्धांजलि एवं प्रभावित लोगों के प्रति हार्दिक संवेदना। 

  एंडरसन तो बिन सजा पाये ही मर गया पर जीवित दोषियों पर कड़ी कार्यवाही होनी चाहिए और प्रभावितों के पुनर्वास की बेहतर व्यवस्था   की जाने चाहिए।