पिछले 3 दिन से मायावती चर्चा में हैं, राजनीतिक व्यक्तित्व अक्सर चर्चा में आते रहते हैं, लेकिन इस बार मामला उनके अपमान और उन्हें अपशब्द कहे जाने को लेकर है | बीजेपी के एक निलंबित पदाधिकारी ने उनके लिए आपत्तिजनक भाषा का प्रयोग किया, और केस दर्ज होने के बाद अभी वह व्यक्ति फरार है |
अब इसके बाद मायावती के समर्थकों नें बदले में उस व्यक्ति और उसके परिवार को तमाम तरह की गालियाँ देनी शुरू कर दी, उसकी पत्नी, बेटी, माँ और बहन के लिए अपशब्द कहे गये और भय का माहौल बना दिया गया |
इन परिस्थितियों के बीच असल मुद्दा यह है कि क्यूँ हर तरह के मामलों में महिलाओं को निशाना बनाया जाता है, यदि वह व्यक्ति दोषी है तो उसे सजा दिलाई जाये, पर जिस तरह महिला के अपमान के नाम पर मायावती के पक्ष के लोग उसी भाषा का इस्तेमाल कर रहे हैं, तो क्या ये वैसा ही अपराध नहीं है, जोकि अधिक संगठित रूप से किया जा रहा है |
शोषक वर्गअथवा असंतुष्ट वर्ग दूसरे पक्ष को नीचा दिखाने के लिए उसकी पहचान को गालियों से जोड़ देता है, हमारे समाज में भी ऐसा हुआ, जातिवादी, अश्लील, नस्लभेद, वर्गभेद से जुडी तमाम गालियाँ बनीं | कुछ गालियाँ हमें किसी जानवर से तुलना कराती मिलती हैं तो कोई व्यक्तित्वगत कमजोरी प्रदर्शित करती हैं | कुल मिलकर किसी कमतरी का एहसास कराती हैं गालियाँ |
यहाँ अभी बात नारीवाद पर है, इन पूरी घटनाओं पर मेरा सवाल स्त्री विमर्श से जुड़े बुद्धिजीवियों से है कि क्यूँ आप सामने आकर इस घटना और प्रतिघटना पर समान रूप से आक्रोश प्रकट नहीं कर रहे हैं |
मुझको लगता है कि इस घटना ने एक बड़ा मौका उपलब्ध कराया है कि राजनीतिक खींचतान के तानेबाने को उपेक्षित करते हुए इस पर विमर्श का माहौल तैयार कराया जाये, कि भाषा में नारियों को अपमानित करने वाली अश्लील गालियों का समाज पर क्या असर पड़ता है और कैसे इस प्रभाव को कम किया जाए |
पर अपने अनुभवों के आधार पर मैं यह भी देख रहा हूँ कि ये अश्लील गालियाँ हमारे परंपरागत रुढ़िवादी और साथ ही वैचारिक आधुनिक समाज में सामान रूप से चलनशील हैं | बहुत से टीवी या ऑनलाइन शोज में बहुत ही भद्दी भाषा का प्रयोग किया जाता है, पर उनका बोलने की स्वतंत्रता के नाम पर बचाव भी किया जाता है | बहुत से लोगों की बोलचाल में, चाहे वह महिला हो या पुरुष, ऐसे शब्द बड़े ही आराम से निकलते हैं |
तो अब सवाल यह है कि इनको आपत्तिजनक स्वीकार्य किये जाने की क्या सीमा मानी जानी चाहिए | मैं कोई मोरल पोलिसिंग की बात नहीं कर रहा हूँ, सिर्फ ये समझना चाह रहा हूँ कि ऑनरिकॉर्ड ऐसी बातें आना पर इतना हल्ला हो हल्ला मच जाता है, लेकिन दिनभर ऐसी ही भाषा का प्रयोग करने वाले नारीवाद के लिए चुनौती हैं या नहीं |