रविवार, फ़रवरी 27, 2011

भारतीय न्याय तंत्र में अफजल और कसाब

दो दिन पहले के अखबार में एक खबर ने मेरा ध्यान खींचा वह खबर थी-  ''राष्ट्रपति को नहीं भेजी अफजल की दया याचिका'' | इस खबर के अनुसार केन्द्रीय गृह मंत्री ने राज्यसभा में एक प्रश्न के उत्तर में यह बताया है कि अफजल गुरु की दया याचिका अभी तक राष्ट्रपति भवन तक नहीं पहुंचाई गयी है| पूरी खबर पढ़ने के बाद इस बात का भी ज्ञान हुआ यदि सरकार आरोपी की दया याचिका पर अनिश्चितकाल तक कोई निर्णय न ले तो आरोपी को अपने मामले को उच्चतम न्यायालय में ले जाने का विकल्प प्राप्त हो जाता है, अब यहाँ पर 'अनिश्चितकालीन' समय से किस समय अवधि का बोध होता है यह तो मुझे समझ में नहीं आ रहा लेकिन वर्तमान हालातों को देखकर यह अवश्य ही समझ में आ रहा है,कि भारत की सर्वोच्च संवैधानिक संस्था 'भारतीय संसद'  में हमला कर भारत की अस्मिता पर चोट पहुँचाने वाला हमले का मास्टर माइंड अफजल गुरु स्वाभाविक मृत्यु से ही मारा जायेगा क्योंकि निचली अदालत द्वारा अफजल को फांसी की सजा दिए जाने और उच्च न्यायलय एवं उच्चतम न्यायलय द्वारा फांसी की सजा के निर्णय को बरक़रार रखे जाने के साढ़े चार वर्ष बाद भी अफजल जेल में भारतीय जमीं का अन्न डकार रहा है | और उसकी पत्नी द्वारा राष्ट्रपति को भेजी गयी दया याचिका देश में संचार क्रांति के आ जाने के बावजूद अभी तक अपने गंतव्य अर्थात राष्ट्रपति भवन तक नहीं पहुँच पाई है |
        जहाँ एक और अफजल गुरु की दया याचिका केन्द्रीय गृह मंत्रालय के कार्यालय में आराम फरमा रही है वहीँ भारत की आर्थिक राजधानी मुंबई पर आतंकवादी हमला कर सैकड़ों लोगों की जान लेने वाले दस आतंकवादियों में से जिन्दा बचे  एकमात्र आतंकी अजमल कसाब को निचली अदालत द्वारा दिए गए मृत्युदंड को मुंबई उच्च न्यायलय ने बरकरार रखा है, और अब कसाब के वकील ने उच्चतम न्यायलय में अपील करने के विकल्प के खुला होने की बात की है यदि यह मामला उच्चतम न्यायलय में गया  तो भी निर्णय मृत्युदंड का ही रहेगा इसके बाद कसाब अपने आखिरी अधिकार का भी प्रयोग करेगा और वह भी राष्ट्रपति के पास दया याचिका भेजेगा और अन्त्वोगत्वा वह भी अफजल गुरु की तरह ही सरकारी आवास अर्थात जेल में अपनी जिंदगी गुजार देगा और भारत सरकार देश के ईमानदार एवं मेहनतकश लोगों द्वारा दिए गए कर के करोड़ों रुपयों का उपयोग इन आतंकियों की सुरक्षा के नाम पर खर्च कर देगी | 
      अब तो दया याचिका का प्रयोग बड़े गुनाहगारों को बचने के लिए किया जाने लगा है और इस मामले में तो उच्चतम न्यायालय भी कुछ नहीं कर सकती |
      कसाब मामले में यह बात अक्सर कही गयी है कि कसाब को अपना बचाव करने और अपनी बात कहने का पूरा मौका दिया गया है ताकि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत की छवि एक ऐसे राष्ट्र के रूप में बन जाये जहाँ पर एक आतंकवादी के लिए भी कानून एवं न्यायालय पूरी निष्पक्षता के साथ कार्य करता  है | परन्तु यहाँ पर मेरा प्रश्न यह है कि मानाकि इस मामले से तो देश की छवि अच्छी होगी, परन्तु क्या विश्व की भीषणतम रासायनिक दुर्घटना भोपाल गैस त्रासदी में साढ़े पच्चीस वर्ष बाद आये अन्यायपूर्ण निर्णय से देश की छवि को बहुत लाभ हुआ है, अनेक मामलों में अपराधी करार दिए जाने वाले राजनेता और प्रभावशाली व्यक्ति जब अल्प समय में जेल से छूट कर आजाद घूमते हैं क्या तब भारत की छवि बहुत अच्छी हो जाती है, जब किसी मामले पर न्यायालय का फैसला तीस-चालीस वर्षों बाद आता है तो क्या भारत की छवि में निखार आ जाता है |
     भोपाल गैस त्रासदी पर न्यायालय का  निर्णय, अफजल गुरु का अभी तक जिन्दा रहना आदि ऐसे कई मामलों के कारण अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत की छवि एक ऐसे राष्ट्र के रूप में बन रही है जहाँ  देश पर हमला और देश का अहित करने वाले आरोपी विदेशी नागरिकों की सुरक्षा का पूरा ध्यान दिया जाता है जबकि देश की आम जनता  न्यायालय में न्याय मांगते हुए ही बूढी हो जाती है |
    जब पूरे भारत ने मीडिया के माध्यम से कसाब को आतंक फैलाते हुए देखा है तो क्यों न्याय की निष्पक्षता के नाम पर उसको जेल में जिन्दा रखकर उसकी सुरक्षा के नाम पर करोड़ों रुपये फूंके जा रहे हैं|  पुराने समय में अपराधी को शहर की जनता के सामने छोड़ दिया जाता था और जनता द्वारा अपराधी को पत्थरों से मारा जाता था और अंततः अपराधी की मृत्यु हो जाती थी | कसाब और अफजल जैसे आतंकियों के साथ भी ऐसा ही होना चाहिए ताकि कोई भी हमारे देश की ओर आँख उठाने की हिम्मत ही न कर सके |